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Dr. Mili is a renowned name in the field of mental health counselling. She has 9 years of experience with thousand of clients.
Real FACTS of MASTURBATION (hastmaithun) in hindi
अगर आप हस्तमैथुन के विषय में डिटेल जानकारी चाहते हैं तो आप सही जगह पर आए हैं इस ब्लॉग में कोशिश करुंगी कि आपको विस्तार से हस्तमैथुन के फायदे और नुकसान के बारे में बता. अक्सर आप पत्र-पत्रिकाओं में हस्तमैथुन के संबंध में अनेक तरह की बातें पढ़ते होंगे. कहीं इसे बहुत गलत बताया जाता है, कही इसके बहुत से नुकसान बताए जाते हैं, तो कहीं कहीं इसे पाप के रूप में भी दिखाया जाता है. समझने वाली बात यह है की क्या सच में हस्तमैथुन पाप है? या अनैतिक कार्य है?
कई धार्मिक गुरु इसे और पापा बता चुके होंगे आपको अब तक और कहीं ना कहीं आप भी उनसे सहमत होंगे. शरीर की प्रकृति गत जरूरत को हम पाप और पुन्य से कैसे जुड़ सकते हैं यह मेरी समझ से बाहर की बात है. कोई भी इंसान अगर थोड़ा भी तार्किक होकर सोचे तो बहुत आसानी से समझ सकता है कि यह क्रिया बिल्कुल ही प्राकृतिक है शरीर में वीर्य के बनने के बाद एक निश्चित समय सीमा के बाद वह बाहर निकलना स्वभाविक है. वीर्य के बाहर निकलने की यह क्रिया तीन क्रियाओं पर निर्भर करती हैं. पहला सह - मैंथुन, दूसरा स्वप्न मैथुन और तीसरा हस्तमैथुन. शरीर इन में से किसी न किसी माध्यम से अपने अंदर की वीर्य को बाहर निकालता है तो यह क्रिया अनैतिक या पाप कैसे हुई? मेरे पास ऐसे मरीज आते हैं जो यह शिकायत करते हैं कि उन्हें एक बहुत ही बुरी आदत लग गई है, वे अपने आपको चाहकर भी इसे करने से रोक नहीं पाते, और इससे यह बहुत सी परेशानियां हो रही हैं. जैसे सर दर्द, पैरों में दर्द, दुबला होना, चिड़चिड़ापन, अपराध भाव महसूस होना. बहुत दुख होता है ऐसे मरीजों को देखकर कि उन्हें बिना किसी बीमारी के ही बीमार होना पड़ रहा है, हस्तमैथुन करने वाले लोगों की अधिकांश समस्याएं मानसिक होती हैं जोकि तनाव और अपराधबोध के कारण उत्पन्न होती हैं. यदि बारीकी से इनका विश्लेषण किया जाए तो इन सभी लक्षणों से बहुत ही आसानी से निजात पाया जा सकता है. अगर आपको भी ऐसे लक्षण हो तो आपको किसी मनोवैज्ञानिक से मिलकर परामर्श लेना चाहिए.
हस्तमैथुन करना पाप नहीं है परंतु इसका यह मतलब नहीं कि इसका कोई नुकसान नहीं है. किसी भी चीज की अति नुकसानदेह होती है. जरूरत है सही जानकारी होने की. हस्तमैथुन के विषय में सबसे अधिक जिज्ञासा इस बारे में होती है कि इसे कितनी बार करना सही है.
कई धार्मिक गुरु इसे और पापा बता चुके होंगे आपको अब तक और कहीं ना कहीं आप भी उनसे सहमत होंगे. शरीर की प्रकृति गत जरूरत को हम पाप और पुन्य से कैसे जुड़ सकते हैं यह मेरी समझ से बाहर की बात है. कोई भी इंसान अगर थोड़ा भी तार्किक होकर सोचे तो बहुत आसानी से समझ सकता है कि यह क्रिया बिल्कुल ही प्राकृतिक है शरीर में वीर्य के बनने के बाद एक निश्चित समय सीमा के बाद वह बाहर निकलना स्वभाविक है. वीर्य के बाहर निकलने की यह क्रिया तीन क्रियाओं पर निर्भर करती हैं. पहला सह - मैंथुन, दूसरा स्वप्न मैथुन और तीसरा हस्तमैथुन. शरीर इन में से किसी न किसी माध्यम से अपने अंदर की वीर्य को बाहर निकालता है तो यह क्रिया अनैतिक या पाप कैसे हुई? मेरे पास ऐसे मरीज आते हैं जो यह शिकायत करते हैं कि उन्हें एक बहुत ही बुरी आदत लग गई है, वे अपने आपको चाहकर भी इसे करने से रोक नहीं पाते, और इससे यह बहुत सी परेशानियां हो रही हैं. जैसे सर दर्द, पैरों में दर्द, दुबला होना, चिड़चिड़ापन, अपराध भाव महसूस होना. बहुत दुख होता है ऐसे मरीजों को देखकर कि उन्हें बिना किसी बीमारी के ही बीमार होना पड़ रहा है, हस्तमैथुन करने वाले लोगों की अधिकांश समस्याएं मानसिक होती हैं जोकि तनाव और अपराधबोध के कारण उत्पन्न होती हैं. यदि बारीकी से इनका विश्लेषण किया जाए तो इन सभी लक्षणों से बहुत ही आसानी से निजात पाया जा सकता है. अगर आपको भी ऐसे लक्षण हो तो आपको किसी मनोवैज्ञानिक से मिलकर परामर्श लेना चाहिए.
हस्तमैथुन करना पाप नहीं है परंतु इसका यह मतलब नहीं कि इसका कोई नुकसान नहीं है. किसी भी चीज की अति नुकसानदेह होती है. जरूरत है सही जानकारी होने की. हस्तमैथुन के विषय में सबसे अधिक जिज्ञासा इस बारे में होती है कि इसे कितनी बार करना सही है.
कितनी बार करें हस्तमैथुन??,.
सामान्यता सप्ताह में दो से तीन बार हस्तमैथुन करना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह नहीं होता. परंतु यदि आप इससे अधिक बार हस्तमैथुन करते हैं तो यह आपको शारीरिक रूप से थोड़ा कमजोर कर सकता है लेकिन अगर आप पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन युक्त आहार लें तो इस शारीरिक कमजोरी को बहुत हद तक दूर कर सकते हैं.
कुछ लोग एक दिन में तीन बार करते हैं. यह किसी भी रुप में सही नहीं है आपको इस आदत को बदलने की जरूरत है. इस आदत को छोड़ने के लिए आप क्रिएटिव काम करें. क्रिएटिव काम करने से दिमाग को आवश्यक मनोरंजन और आनंद की अनुभूति होती है जिस कारण वह हस्तमैथुन की तरफ आकर्षित नहीं होता.
कुछ लोग एक दिन में तीन बार करते हैं. यह किसी भी रुप में सही नहीं है आपको इस आदत को बदलने की जरूरत है. इस आदत को छोड़ने के लिए आप क्रिएटिव काम करें. क्रिएटिव काम करने से दिमाग को आवश्यक मनोरंजन और आनंद की अनुभूति होती है जिस कारण वह हस्तमैथुन की तरफ आकर्षित नहीं होता.
किस उम्र में शुरू करें हस्तमैथुन??
यह सवाल भी अधिकांश बच्चों द्वारा पूछा जाता है कि किस उम्र में हम हस्तमैथुन शुरू कर सकते हैं. किसी भी उम्र को इसकी के लिए निर्धारित नहीं किया जा सकता. वास्तविकता यह है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी तरफ से कोशिश करके हस्तमैथुन की शुरुआत नहीं करनी चाहिए. आपका शरीर आवश्यकता पड़ने पर खुद ही को इस क्रिया की तरफ ले जाएगा जो कि एक प्राकृतिक शुरुआत होगी और सेहत के लिए अच्छी भी. जरूरत धैर्य रखने की है.
सावधानियां:-
हस्तमैथुन करने वाले लोग अक्सर छुप छुपाकर, डरी हुई अवस्था में कैसे करते हैं जिससे उनके मन में तनाव बना रहता है और वह इस क्रिया को भी सही तरीके से नहीं कर पाते. जिससे उन्हें बार-बार ऐसे करने की जरूरत महसूस होती है जबकि अगर इस क्रिया को भी वैसे ही किया जाए जैसे अपने किसी साथी के साथ करते हैं तो आप आवश्यक नियमों का पालन कर पाएंगे. एकांत का ख्याल रखना बहुत जरूरी है क्रिया को करते समय. इसे करते हुए अपने अंदर किसी भी तरह के अपराध भाव को ना आने दे. यह बिल्कुल सामान्य क्रिया है. सम्मान के साथ उपयुक्त वातावरण में आप इसे करें तो आप इसके कारण होने वाले अनेक दुष्प्रभावों से खुद को बचा सकते हैं.
सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैं सभी क्लाइंट्स को कहती हूं की खुद का सम्मान करें और लॉजिकल होकर सोचे और फैसले करें. इससे आप सुनी सुनाई बातों के कारण तनाव में नहीं आएंगे.
अगर आप सवाल पूछना चाहे तो निम्न ईमेल पर मेल कर सकते हैं:-
drmili04@gmail.com
सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैं सभी क्लाइंट्स को कहती हूं की खुद का सम्मान करें और लॉजिकल होकर सोचे और फैसले करें. इससे आप सुनी सुनाई बातों के कारण तनाव में नहीं आएंगे.
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Dr. Mili is a renowned name in the field of mental health counselling. She has 9 years of experience with thousand of clients.
Obsessive Compulsive Disorder (OCD), Symptoms and Treatment / mental health counselling, in hindi
नमस्कार दोस्तों,
अक्सर आपने घरों में ऐसे लोगों को देखा होगा जो बहुत ज्यादा साफ सफाई करते हैं या फिर किसी के काम को बार बार दोहराते हैं. जैसे एक बार स्विच बंद करने के बाद भी इन्हें संतोष नहीं होता और यह बार बार आकर चेक करते हैं कि स्विच बंद हुआ या नहीं, साबुन से हाथ धो लेने के बाद भी इन्हें लगता है कि मेरे हाथ गंदे हैं और वह बार-बार हाथ धोते हैं, महिलाएं अक्सर बर्तनों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं घरों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं कहीं बाहर जाने के बाद घर आकर वह फौरन नहाती हैं, अगर कोई बाहर से आ गया हो तो उसके जाने के बाद दो जहां बैठा हो उस जगह की सफाई करती हैं, पुरुषों में भी देखे जाते हैं लेकिन महिलाओं में इसका प्रतिशत थोड़ा अधिक हैl आमतौर पर इसे बोलचाल की भाषा में मेनिया कहा जाता है. मेडिकल टर्म में इसे अब से सिर्फ कंपल्सिव डिसऑर्डर कहा जाता है जिसका हिंदी नाम है मनोग्रसित बाध्यता.
यह एक गंभीर और जटिल बीमारी है. इसमें कोई भी व्यक्ति रोगी की मानसिक स्थिति को समझ नहीं पाता कि वह किस कदर परेशान है इन कामों को बार बार करने के लिए अक्सर लोग इसे जिद्दी स्वभाव या फिर मन की बदमाशी कहकर वैसे रोगियों को डांटते फटकारते हैं, दुत्कारते करते हैं. कोई भी इनके साथ सहानुभूति नहीं रखता. आमतौर पर यह बीमारी शुरुआत में पकड़ में नहीं आती. जब तक व्यक्ति को यह लगता है कि उसे कोई बीमारी हुई है तब तक चार-पांच साल गुजर चुके होते हैं और जब वह इसका इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास जाता है तब उसे परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि फिर इस के इलाज में लंबा समय लगता है क्योंकि बीमारी बहुत पुरानी हो चुकी होती है. ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता कि इसका इलाज कहां कराया जाए और वह लोग सीधे मनोचिकित्सक के पास चले जाते हैं और मनोचिकित्सक सिर्फ दवाएं दे करके इसका इलाज करने की कोशिश करते हैं जबकि ओसीडी बिना काउंसलिंग के ठीक नहीं हो सकता जब दवाई खाते हैं तो इसके लक्षण कुछ समय के लिए दूर हो जाते हैं या छुप जाते हैं लेकिन बीमारी वैसे की वैसी रहती है जैसे ही आप दवा छोड़ते हैं बीमारी वापस आ जाती है अभी 2 महीने के बाद कभी 3 महीने के बाद और कभी साल भर के बाद भी इस काबिल आज तक हो सकता है जब आप दवाओं के साथ साथ काउंसलिंग करवाएं बल्कि अगर आपको समस्या शुरू में ही समझ में आ जाती है कुछ महीनों एक 2 साल के अंदर ही आप समझ जाते हैं तो आप सिर्फ काउंसलिंग से भी ठीक हो सकते हैं लेकिन किसी भी हाल में आप सिर्फ दवाओं से ठीक नहीं हो सकते. ओसीडी होने पर आप सबसे पहले किसी मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें एक साइकोलॉजिस्ट इस केस की आने के बाद इस बीमारी के कारणों का पता लगाता है और फिर उसके अनुसार रोगों की चिकित्सा करता है जिसमें वह कभी-कभी सम्मोहन चिकित्सा का भी प्रयोग करता है या फिर सीबीटी इसके लिए बेहतर उपाय होता है. इस बीमारी का इलाज अमूमन थोड़ा लंबा चलता है इसमें रोगी को थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत होती है साथ ही रोगी को एक्टिव हो करके काउंसलिंग में शामिल होना होता है आप सिर्फ दवाई खाकर अगर यह सच है कि मैं अपने बाकी जिंदगी को ऐसे ही चलाते रहूं और दवाई खाऊं तो ठीक हो जाए तो यह पॉसिबल नहीं है.
दोस्तों इस बीमारी को बिल्कुल भी नजरअंदाज ना करें अगर यह बीमारी आपको है या किसी अपने को है तो उसे समझे उसे समझने की जरूरत है वह व्यक्ति बहुत परेशान होता है अपने विचारों के कारण क्योंकि उसके दिमाग में हर वक्त एक आशंका चल रही होती है कुछ बुरा हो जाने की कुछ अनिश्चित हो जाने की जिद डर से वह एक तनाव से गुजर रहा होता है और इसी तनाव की अभिव्यक्ति इस तरह के कामों में निकलने लगती हैं यह बीमारी पूरी तरह से 18 डिसऑर्डर है विचारों की समस्या है जिसे विचारों के अस्तर पर ही खत्म किया जा सकता है विचारों को दवाओं से खत्म नहीं किया जा सकता है इसमें आपको सिर्फ और सिर्फ आपको काउंसलिंग ही मदद कर सकता है. आप जितना देर करेंगे इसका इलाज शुरू करने में इसको ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगेगा. ओसीडी के और भी बहुत से प्रभाव होते हैं इसे मैं अगले लेख में लेकर आने की कोशिश करुंगी.
ओसीडी कुछ खास तरह के व्यक्तित्व को अधिक होने की संभावना होती है. ऐसे व्यक्तित्व के कुछ सामान्य लक्षण है:-
1. जिद्दी स्वभाव
2. अंतर्मुखी
3. आक्रामक
4. डरपोक या भीरू
5. गुस्सा
6. अति सक्रियता, आदि.
अक्सर आपने घरों में ऐसे लोगों को देखा होगा जो बहुत ज्यादा साफ सफाई करते हैं या फिर किसी के काम को बार बार दोहराते हैं. जैसे एक बार स्विच बंद करने के बाद भी इन्हें संतोष नहीं होता और यह बार बार आकर चेक करते हैं कि स्विच बंद हुआ या नहीं, साबुन से हाथ धो लेने के बाद भी इन्हें लगता है कि मेरे हाथ गंदे हैं और वह बार-बार हाथ धोते हैं, महिलाएं अक्सर बर्तनों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं घरों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं कहीं बाहर जाने के बाद घर आकर वह फौरन नहाती हैं, अगर कोई बाहर से आ गया हो तो उसके जाने के बाद दो जहां बैठा हो उस जगह की सफाई करती हैं, पुरुषों में भी देखे जाते हैं लेकिन महिलाओं में इसका प्रतिशत थोड़ा अधिक हैl आमतौर पर इसे बोलचाल की भाषा में मेनिया कहा जाता है. मेडिकल टर्म में इसे अब से सिर्फ कंपल्सिव डिसऑर्डर कहा जाता है जिसका हिंदी नाम है मनोग्रसित बाध्यता.
यह एक गंभीर और जटिल बीमारी है. इसमें कोई भी व्यक्ति रोगी की मानसिक स्थिति को समझ नहीं पाता कि वह किस कदर परेशान है इन कामों को बार बार करने के लिए अक्सर लोग इसे जिद्दी स्वभाव या फिर मन की बदमाशी कहकर वैसे रोगियों को डांटते फटकारते हैं, दुत्कारते करते हैं. कोई भी इनके साथ सहानुभूति नहीं रखता. आमतौर पर यह बीमारी शुरुआत में पकड़ में नहीं आती. जब तक व्यक्ति को यह लगता है कि उसे कोई बीमारी हुई है तब तक चार-पांच साल गुजर चुके होते हैं और जब वह इसका इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास जाता है तब उसे परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि फिर इस के इलाज में लंबा समय लगता है क्योंकि बीमारी बहुत पुरानी हो चुकी होती है. ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता कि इसका इलाज कहां कराया जाए और वह लोग सीधे मनोचिकित्सक के पास चले जाते हैं और मनोचिकित्सक सिर्फ दवाएं दे करके इसका इलाज करने की कोशिश करते हैं जबकि ओसीडी बिना काउंसलिंग के ठीक नहीं हो सकता जब दवाई खाते हैं तो इसके लक्षण कुछ समय के लिए दूर हो जाते हैं या छुप जाते हैं लेकिन बीमारी वैसे की वैसी रहती है जैसे ही आप दवा छोड़ते हैं बीमारी वापस आ जाती है अभी 2 महीने के बाद कभी 3 महीने के बाद और कभी साल भर के बाद भी इस काबिल आज तक हो सकता है जब आप दवाओं के साथ साथ काउंसलिंग करवाएं बल्कि अगर आपको समस्या शुरू में ही समझ में आ जाती है कुछ महीनों एक 2 साल के अंदर ही आप समझ जाते हैं तो आप सिर्फ काउंसलिंग से भी ठीक हो सकते हैं लेकिन किसी भी हाल में आप सिर्फ दवाओं से ठीक नहीं हो सकते. ओसीडी होने पर आप सबसे पहले किसी मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें एक साइकोलॉजिस्ट इस केस की आने के बाद इस बीमारी के कारणों का पता लगाता है और फिर उसके अनुसार रोगों की चिकित्सा करता है जिसमें वह कभी-कभी सम्मोहन चिकित्सा का भी प्रयोग करता है या फिर सीबीटी इसके लिए बेहतर उपाय होता है. इस बीमारी का इलाज अमूमन थोड़ा लंबा चलता है इसमें रोगी को थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत होती है साथ ही रोगी को एक्टिव हो करके काउंसलिंग में शामिल होना होता है आप सिर्फ दवाई खाकर अगर यह सच है कि मैं अपने बाकी जिंदगी को ऐसे ही चलाते रहूं और दवाई खाऊं तो ठीक हो जाए तो यह पॉसिबल नहीं है.
दोस्तों इस बीमारी को बिल्कुल भी नजरअंदाज ना करें अगर यह बीमारी आपको है या किसी अपने को है तो उसे समझे उसे समझने की जरूरत है वह व्यक्ति बहुत परेशान होता है अपने विचारों के कारण क्योंकि उसके दिमाग में हर वक्त एक आशंका चल रही होती है कुछ बुरा हो जाने की कुछ अनिश्चित हो जाने की जिद डर से वह एक तनाव से गुजर रहा होता है और इसी तनाव की अभिव्यक्ति इस तरह के कामों में निकलने लगती हैं यह बीमारी पूरी तरह से 18 डिसऑर्डर है विचारों की समस्या है जिसे विचारों के अस्तर पर ही खत्म किया जा सकता है विचारों को दवाओं से खत्म नहीं किया जा सकता है इसमें आपको सिर्फ और सिर्फ आपको काउंसलिंग ही मदद कर सकता है. आप जितना देर करेंगे इसका इलाज शुरू करने में इसको ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगेगा. ओसीडी के और भी बहुत से प्रभाव होते हैं इसे मैं अगले लेख में लेकर आने की कोशिश करुंगी.
ओसीडी कुछ खास तरह के व्यक्तित्व को अधिक होने की संभावना होती है. ऐसे व्यक्तित्व के कुछ सामान्य लक्षण है:-
1. जिद्दी स्वभाव
2. अंतर्मुखी
3. आक्रामक
4. डरपोक या भीरू
5. गुस्सा
6. अति सक्रियता, आदि.
अगर इनमें से कोई भी लक्षण आप में या आपके किसी परिचित में है तो आपको सावधान और सजग रहने की जरूरत है और किसी भी तनावपूर्ण परिस्थिति के आने के बाद जल्द से जल्द उस तनाव से बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए या फिर किसी साइकोलॉजिस्ट की मदद लेनी चाहिए. अरे बच्चों में ऐसे लक्षण हम देखते हैं लेकिन हम इसे बचपना कह कर के नजरअंदाज कर देते जब की जरूरत है कि ऐसे बच्चों को बीच-बीच में मनोवैज्ञानिक के संपर्क में लाया जाए ताकि जैसे ही किसी तनावपूर्ण परिस्थिति इस बीमारी को उभारने में मदद करें उनका इलाज तुरंत हो सके.
हमारी थोड़ी सी सावधानी और सजगता हमें अनेक प्रकार के बीमारियों से बचा सकती है.
हमारी थोड़ी सी सावधानी और सजगता हमें अनेक प्रकार के बीमारियों से बचा सकती है.
अधिक जानकारी के लिए मेरा इससे सम्बन्धित यूट्यूब वीडियो देखिए। वीडियो का लिंक है:-
https://youtu.be/Sld4-hQHguY
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धन्यवाद
डॉ मिली
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