नमस्कार दोस्तों,
अक्सर आपने घरों में ऐसे लोगों को देखा होगा जो बहुत ज्यादा साफ सफाई करते हैं या फिर किसी के काम को बार बार दोहराते हैं. जैसे एक बार स्विच बंद करने के बाद भी इन्हें संतोष नहीं होता और यह बार बार आकर चेक करते हैं कि स्विच बंद हुआ या नहीं, साबुन से हाथ धो लेने के बाद भी इन्हें लगता है कि मेरे हाथ गंदे हैं और वह बार-बार हाथ धोते हैं, महिलाएं अक्सर बर्तनों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं घरों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं कहीं बाहर जाने के बाद घर आकर वह फौरन नहाती हैं, अगर कोई बाहर से आ गया हो तो उसके जाने के बाद दो जहां बैठा हो उस जगह की सफाई करती हैं, पुरुषों में भी देखे जाते हैं लेकिन महिलाओं में इसका प्रतिशत थोड़ा अधिक हैl आमतौर पर इसे बोलचाल की भाषा में मेनिया कहा जाता है. मेडिकल टर्म में इसे अब से सिर्फ कंपल्सिव डिसऑर्डर कहा जाता है जिसका हिंदी नाम है मनोग्रसित बाध्यता.
यह एक गंभीर और जटिल बीमारी है. इसमें कोई भी व्यक्ति रोगी की मानसिक स्थिति को समझ नहीं पाता कि वह किस कदर परेशान है इन कामों को बार बार करने के लिए अक्सर लोग इसे जिद्दी स्वभाव या फिर मन की बदमाशी कहकर वैसे रोगियों को डांटते फटकारते हैं, दुत्कारते करते हैं. कोई भी इनके साथ सहानुभूति नहीं रखता. आमतौर पर यह बीमारी शुरुआत में पकड़ में नहीं आती. जब तक व्यक्ति को यह लगता है कि उसे कोई बीमारी हुई है तब तक चार-पांच साल गुजर चुके होते हैं और जब वह इसका इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास जाता है तब उसे परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि फिर इस के इलाज में लंबा समय लगता है क्योंकि बीमारी बहुत पुरानी हो चुकी होती है. ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता कि इसका इलाज कहां कराया जाए और वह लोग सीधे मनोचिकित्सक के पास चले जाते हैं और मनोचिकित्सक सिर्फ दवाएं दे करके इसका इलाज करने की कोशिश करते हैं जबकि ओसीडी बिना काउंसलिंग के ठीक नहीं हो सकता जब दवाई खाते हैं तो इसके लक्षण कुछ समय के लिए दूर हो जाते हैं या छुप जाते हैं लेकिन बीमारी वैसे की वैसी रहती है जैसे ही आप दवा छोड़ते हैं बीमारी वापस आ जाती है अभी 2 महीने के बाद कभी 3 महीने के बाद और कभी साल भर के बाद भी इस काबिल आज तक हो सकता है जब आप दवाओं के साथ साथ काउंसलिंग करवाएं बल्कि अगर आपको समस्या शुरू में ही समझ में आ जाती है कुछ महीनों एक 2 साल के अंदर ही आप समझ जाते हैं तो आप सिर्फ काउंसलिंग से भी ठीक हो सकते हैं लेकिन किसी भी हाल में आप सिर्फ दवाओं से ठीक नहीं हो सकते. ओसीडी होने पर आप सबसे पहले किसी मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें एक साइकोलॉजिस्ट इस केस की आने के बाद इस बीमारी के कारणों का पता लगाता है और फिर उसके अनुसार रोगों की चिकित्सा करता है जिसमें वह कभी-कभी सम्मोहन चिकित्सा का भी प्रयोग करता है या फिर सीबीटी इसके लिए बेहतर उपाय होता है. इस बीमारी का इलाज अमूमन थोड़ा लंबा चलता है इसमें रोगी को थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत होती है साथ ही रोगी को एक्टिव हो करके काउंसलिंग में शामिल होना होता है आप सिर्फ दवाई खाकर अगर यह सच है कि मैं अपने बाकी जिंदगी को ऐसे ही चलाते रहूं और दवाई खाऊं तो ठीक हो जाए तो यह पॉसिबल नहीं है.
दोस्तों इस बीमारी को बिल्कुल भी नजरअंदाज ना करें अगर यह बीमारी आपको है या किसी अपने को है तो उसे समझे उसे समझने की जरूरत है वह व्यक्ति बहुत परेशान होता है अपने विचारों के कारण क्योंकि उसके दिमाग में हर वक्त एक आशंका चल रही होती है कुछ बुरा हो जाने की कुछ अनिश्चित हो जाने की जिद डर से वह एक तनाव से गुजर रहा होता है और इसी तनाव की अभिव्यक्ति इस तरह के कामों में निकलने लगती हैं यह बीमारी पूरी तरह से 18 डिसऑर्डर है विचारों की समस्या है जिसे विचारों के अस्तर पर ही खत्म किया जा सकता है विचारों को दवाओं से खत्म नहीं किया जा सकता है इसमें आपको सिर्फ और सिर्फ आपको काउंसलिंग ही मदद कर सकता है. आप जितना देर करेंगे इसका इलाज शुरू करने में इसको ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगेगा. ओसीडी के और भी बहुत से प्रभाव होते हैं इसे मैं अगले लेख में लेकर आने की कोशिश करुंगी.
ओसीडी कुछ खास तरह के व्यक्तित्व को अधिक होने की संभावना होती है. ऐसे व्यक्तित्व के कुछ सामान्य लक्षण है:-
1. जिद्दी स्वभाव
2. अंतर्मुखी
3. आक्रामक
4. डरपोक या भीरू
5. गुस्सा
6. अति सक्रियता, आदि.
अक्सर आपने घरों में ऐसे लोगों को देखा होगा जो बहुत ज्यादा साफ सफाई करते हैं या फिर किसी के काम को बार बार दोहराते हैं. जैसे एक बार स्विच बंद करने के बाद भी इन्हें संतोष नहीं होता और यह बार बार आकर चेक करते हैं कि स्विच बंद हुआ या नहीं, साबुन से हाथ धो लेने के बाद भी इन्हें लगता है कि मेरे हाथ गंदे हैं और वह बार-बार हाथ धोते हैं, महिलाएं अक्सर बर्तनों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं घरों की सफाई बहुत ज्यादा करती हैं कहीं बाहर जाने के बाद घर आकर वह फौरन नहाती हैं, अगर कोई बाहर से आ गया हो तो उसके जाने के बाद दो जहां बैठा हो उस जगह की सफाई करती हैं, पुरुषों में भी देखे जाते हैं लेकिन महिलाओं में इसका प्रतिशत थोड़ा अधिक हैl आमतौर पर इसे बोलचाल की भाषा में मेनिया कहा जाता है. मेडिकल टर्म में इसे अब से सिर्फ कंपल्सिव डिसऑर्डर कहा जाता है जिसका हिंदी नाम है मनोग्रसित बाध्यता.
यह एक गंभीर और जटिल बीमारी है. इसमें कोई भी व्यक्ति रोगी की मानसिक स्थिति को समझ नहीं पाता कि वह किस कदर परेशान है इन कामों को बार बार करने के लिए अक्सर लोग इसे जिद्दी स्वभाव या फिर मन की बदमाशी कहकर वैसे रोगियों को डांटते फटकारते हैं, दुत्कारते करते हैं. कोई भी इनके साथ सहानुभूति नहीं रखता. आमतौर पर यह बीमारी शुरुआत में पकड़ में नहीं आती. जब तक व्यक्ति को यह लगता है कि उसे कोई बीमारी हुई है तब तक चार-पांच साल गुजर चुके होते हैं और जब वह इसका इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास जाता है तब उसे परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि फिर इस के इलाज में लंबा समय लगता है क्योंकि बीमारी बहुत पुरानी हो चुकी होती है. ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता कि इसका इलाज कहां कराया जाए और वह लोग सीधे मनोचिकित्सक के पास चले जाते हैं और मनोचिकित्सक सिर्फ दवाएं दे करके इसका इलाज करने की कोशिश करते हैं जबकि ओसीडी बिना काउंसलिंग के ठीक नहीं हो सकता जब दवाई खाते हैं तो इसके लक्षण कुछ समय के लिए दूर हो जाते हैं या छुप जाते हैं लेकिन बीमारी वैसे की वैसी रहती है जैसे ही आप दवा छोड़ते हैं बीमारी वापस आ जाती है अभी 2 महीने के बाद कभी 3 महीने के बाद और कभी साल भर के बाद भी इस काबिल आज तक हो सकता है जब आप दवाओं के साथ साथ काउंसलिंग करवाएं बल्कि अगर आपको समस्या शुरू में ही समझ में आ जाती है कुछ महीनों एक 2 साल के अंदर ही आप समझ जाते हैं तो आप सिर्फ काउंसलिंग से भी ठीक हो सकते हैं लेकिन किसी भी हाल में आप सिर्फ दवाओं से ठीक नहीं हो सकते. ओसीडी होने पर आप सबसे पहले किसी मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें एक साइकोलॉजिस्ट इस केस की आने के बाद इस बीमारी के कारणों का पता लगाता है और फिर उसके अनुसार रोगों की चिकित्सा करता है जिसमें वह कभी-कभी सम्मोहन चिकित्सा का भी प्रयोग करता है या फिर सीबीटी इसके लिए बेहतर उपाय होता है. इस बीमारी का इलाज अमूमन थोड़ा लंबा चलता है इसमें रोगी को थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत होती है साथ ही रोगी को एक्टिव हो करके काउंसलिंग में शामिल होना होता है आप सिर्फ दवाई खाकर अगर यह सच है कि मैं अपने बाकी जिंदगी को ऐसे ही चलाते रहूं और दवाई खाऊं तो ठीक हो जाए तो यह पॉसिबल नहीं है.
दोस्तों इस बीमारी को बिल्कुल भी नजरअंदाज ना करें अगर यह बीमारी आपको है या किसी अपने को है तो उसे समझे उसे समझने की जरूरत है वह व्यक्ति बहुत परेशान होता है अपने विचारों के कारण क्योंकि उसके दिमाग में हर वक्त एक आशंका चल रही होती है कुछ बुरा हो जाने की कुछ अनिश्चित हो जाने की जिद डर से वह एक तनाव से गुजर रहा होता है और इसी तनाव की अभिव्यक्ति इस तरह के कामों में निकलने लगती हैं यह बीमारी पूरी तरह से 18 डिसऑर्डर है विचारों की समस्या है जिसे विचारों के अस्तर पर ही खत्म किया जा सकता है विचारों को दवाओं से खत्म नहीं किया जा सकता है इसमें आपको सिर्फ और सिर्फ आपको काउंसलिंग ही मदद कर सकता है. आप जितना देर करेंगे इसका इलाज शुरू करने में इसको ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगेगा. ओसीडी के और भी बहुत से प्रभाव होते हैं इसे मैं अगले लेख में लेकर आने की कोशिश करुंगी.
ओसीडी कुछ खास तरह के व्यक्तित्व को अधिक होने की संभावना होती है. ऐसे व्यक्तित्व के कुछ सामान्य लक्षण है:-
1. जिद्दी स्वभाव
2. अंतर्मुखी
3. आक्रामक
4. डरपोक या भीरू
5. गुस्सा
6. अति सक्रियता, आदि.
अगर इनमें से कोई भी लक्षण आप में या आपके किसी परिचित में है तो आपको सावधान और सजग रहने की जरूरत है और किसी भी तनावपूर्ण परिस्थिति के आने के बाद जल्द से जल्द उस तनाव से बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए या फिर किसी साइकोलॉजिस्ट की मदद लेनी चाहिए. अरे बच्चों में ऐसे लक्षण हम देखते हैं लेकिन हम इसे बचपना कह कर के नजरअंदाज कर देते जब की जरूरत है कि ऐसे बच्चों को बीच-बीच में मनोवैज्ञानिक के संपर्क में लाया जाए ताकि जैसे ही किसी तनावपूर्ण परिस्थिति इस बीमारी को उभारने में मदद करें उनका इलाज तुरंत हो सके.
हमारी थोड़ी सी सावधानी और सजगता हमें अनेक प्रकार के बीमारियों से बचा सकती है.
हमारी थोड़ी सी सावधानी और सजगता हमें अनेक प्रकार के बीमारियों से बचा सकती है.
अधिक जानकारी के लिए मेरा इससे सम्बन्धित यूट्यूब वीडियो देखिए। वीडियो का लिंक है:-
https://youtu.be/Sld4-hQHguY
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धन्यवाद
डॉ मिली
डॉ मिली
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